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य इ॑न्द्राग्नी सु॒तेषु॑ वां॒ स्तव॒त्तेष्वृ॑तावृधा। जो॒ष॒वा॒कं वद॑तः पज्रहोषिणा॒ न दे॑वा भ॒सथ॑श्च॒न ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ya indrāgnī suteṣu vāṁ stavat teṣv ṛtāvṛdhā | joṣavākaṁ vadataḥ pajrahoṣiṇā na devā bhasathaś cana ||

पद पाठ

यः। इ॒न्द्रा॒ग्नी॒ इति॑। सु॒तेषु॑। वा॒म्। स्तव॑त्। तेषु॑। ऋ॒त॒ऽवृ॒धा॒। जो॒ष॒ऽवा॒कम्। वद॑तः। प॒ज्र॒ऽहो॒षि॒णा॒। न। दे॒वा॒। भ॒सथः॑। च॒न ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:59» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:25» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् जन कैसे हों, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पज्रहोषिणा) प्राप्त हुई वाणी वा घोषयुक्त (ऋतावृधा) सत्य बढ़ानेवाले (इन्द्राग्नी) वायु और बिजुली के समान अध्यापक और उपदेशको ! (यः) जो (तेषु) उन (सुतेषु) उत्पन्न हुए पदार्थों में (वाम्) तुम दोनों की (स्तवत्) प्रशंसा करे वा जो (देवा) विद्वान् जन (चन) भी (न) नहीं (भसथः) व्यर्थ वाद करते हैं, उस सर्वजन के प्रति तुम दोनों (जोषवाकम्) प्रीति करनेवाले वचन (वदतः) कहते हो, वह सर्वजन भी तुम्हारे प्रति कहे ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! सर्व पदार्थों में प्रविष्ट वायु और बिजुली को जानकर ऐश्वर्य को प्राप्त होकर रूखी असत्य किया और लोक विद्वेषी जनों को जान सबके उपकार के लिये सत्य प्रिय वाक्य सर्वदा कहो ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे पज्रहोषिणार्तावृधेन्द्राग्नी ! यस्तेषु सुतेषु वां स्तवद्यौ देवा चन न भसथस्तं प्रति युवां जोषवाकं वदतस्स चन युवां प्रति वदेत् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (इन्द्राग्नी) वायुविद्युताविवाऽध्यापकोपदेशकौ (सुतेषु) उत्पन्नेषु पदार्थेषु (वाम्) युवाम् (स्तवत्) प्रशंसेत् (तेषु) (ऋतावृधा) सत्यवर्धकौ (जोषवाकम्) प्रीतिकरं वचनम् (वदतः) (पज्रहोषिणा) पज्रः सङ्गतो होषो घोषो वाग्ययोस्तौ (न) निषेधे (देवा) देवौ विद्वांसौ (भसथः) व्यर्थं वादं वदतः (चन) अपि ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! सर्वेषु पदार्थेषु प्रविष्टौ वायुविद्युतौ विदित्वैश्वर्य्यं प्राप्य रूक्षामसत्यां क्रियां लोकविद्वेष्टॄन् वा मनुष्यान् विदित्वा सर्वेषामुपकाराय सत्यं प्रियं सर्वदा वदत ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! सर्व पदार्थांत प्रविष्ट असलेले वायू व विद्युत जाणून ऐश्वर्य प्राप्त करून असत्य क्रिया व लोकांचा द्वेष करणाऱ्यांना जाणून सर्वांच्या उपकारासाठी सत्य, प्रिय वचन सदैव बोला. ॥ ४ ॥